धीरे से उम्र गुजरी है
दबें कदमों की आहट से
किसी को पता ना चलें
तुम कहां से आये हो
पुरानी सी कोई बात हो चली
जैसे स्कूल के दिन
पतंग उड़ाने का लुत्फ
बारिश में नहाना
जोर से चिल्लाना
देर से उठना
रात तक जागना
गली में बैठना
और जाने क्या-क्या
अब एक रूटिन है
बस कुछ और नहीं
हम बढ़े हो गये।
इरशाद
Thursday, April 30, 2009
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